नरेन्द्र मोदी
नरेन्द्र दामोदरदास मोदी[a] ( , गुजराती: નરેંદ્ર દામોદરદાસ મોદી; जन्म: 17 सितम्बर 1950) 26 मई 2014 से अब तक लगातार दूसरी बार वे भारत के प्रधानमन्त्री बने हैं तथा वाराणसी से लोकसभा सांसद भी चुने गये हैं।[2][3] वे भारत के प्रधानमन्त्री पद पर आसीन होने वाले स्वतंत्र भारत में जन्मे प्रथम व्यक्ति हैं। इससे पहले वे 7 अक्तूबर 2001 से 22 मई 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। मोदी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य हैं।[4]
वडनगर के एक गुजराती परिवार में पैदा हुए, मोदी ने अपने बचपन में चाय बेचने में अपने पिता की मदद की, और बाद में अपना खुद का स्टाल चलाया। आठ साल की उम्र में वे आरएसएस से जुड़े, जिसके साथ एक लंबे समय तक सम्बंधित रहे।[5] स्नातक होने के बाद उन्होंने अपने घर छोड़ दिया। मोदी ने दो साल तक भारत भर में यात्रा की, और कई धार्मिक केन्द्रों का दौरा किया। 1969 या 1970 वे गुजरात लौटे और अहमदाबाद चले गए।[6] 1971 में वह आरएसएस के लिए पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। 1975 में देश भर में आपातकाल की स्थिति के दौरान उन्हें कुछ समय के लिए छिपना पड़ा। 1985 में वे बीजेपी से जुड़े और 2001 तक पार्टी पदानुक्रम के भीतर कई पदों पर कार्य किया, जहाँ से वे धीरे धीरे भाजपा में सचिव के पद पर पहुँचे।[7]
गुजरात भूकम्प २००१, (भुज में भूकंप) के बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के असफल स्वास्थ्य और ख़राब सार्वजनिक छवि के कारण नरेंद्र मोदी को 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। मोदी जल्द ही विधायी विधानसभा के लिए चुने गए। 2002 के गुजरात दंगों में उनके प्रशासन को कठोर माना गया है, इस दौरान उनके संचालन की आलोचना भी हुई।[8] हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल (एसआईटी) को अभियोजन पक्ष की कार्यवाही शुरू करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला।[9] मुख्यमंत्री के तौर पर उनकी नीतियों को आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए श्रेय दिया गया।[10]
वे गुजरात राज्य के 14वें मुख्यमन्त्री रहे। उन्हें उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार 4 बार (2001 से 2014 तक) मुख्यमन्त्री चुना। गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं॥[11] टाइम पत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ़ द ईयर 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया है।[12]
अटल बिहारी वाजपेयी की तरह नरेन्द्र मोदी एक राजनेता और कवि हैं। वे गुजराती भाषा के अलावा हिन्दी में भी देशप्रेम से ओतप्रोत कविताएँ लिखते हैं।[13][14]
उनके नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और 282 सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की।[15] एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगह से जीत दर्ज़ की।[16][17] उनके राज में भारत का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं बुनियादी सुविधाओं पर खर्च तेज़ी से बढ़ा।[18] उन्होंने अफसरशाही में कई सुधार किये तथा योजना आयोग को हटाकर नीति आयोग का गठन किया।[19]
इसके बाद वर्ष 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने उनके नेतृत्त्व में दोबारा चुनाव लड़ा और इस बार पहले से भी ज्यादा बड़ी जीत हासिल हुई। पार्टी ने कुल 303 सीटों पर जीत हासिल की। भाजपा के समर्थक दलों यानी एनडीए को कुल 352 सीटें प्राप्त हुईं।[20] 30 मई 2019 को शपथ ग्रहण कर नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।[21]
2019 के आम चुनाव में उनकी पार्टी की जीत के बाद, उनके प्रशासन ने जम्मू और कश्मीर की विशेष राज्य का दर्जा को रद्द कर दिया। उनके प्रशासन ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, २०१९ भी पेश किया, जिसके परिणामस्वरूप देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। मोदी अपने हिंदू राष्ट्रवादी विश्वासों और 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उनकी कथित भूमिका पर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद का एक आंकड़ा बना हुआ है,[22] जिसे एक बहिष्कारवादी सामाजिक एजेंडे के प्रमाण के रूप में उद्धृत किया गया है। मोदी के कार्यकाल में, भारत ने लोकतांत्रिक बैकस्लेडिंग का अनुभव किया है।[23][24]
निजी जीवन
नरेन्द्र मोदी का जन्म तत्कालीन बॉम्बे राज्य के महेसाना जिला स्थित वडनगर ग्राम में हीराबेन मोदी और दामोदरदास मूलचन्द मोदी के एक मध्यम-वर्गीय परिवार में १७ सितम्बर १९५० को हुआ था।[25] वह पैदा हुए छह बच्चों में तीसरे थे। मोदी का परिवार 'मोध-घांची-तेली' समुदाय से था,[26][27] जिसे भारत सरकार द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।[28] वह पूर्णत: शाकाहारी हैं।[29] भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय युद्ध के दौरान अपने तरुणकाल में उन्होंने स्वेच्छा से रेलवे स्टेशनों पर सफ़र कर रहे सैनिकों की सेवा की।[30] युवावस्था में वह छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए | उन्होंने साथ ही साथ भ्रष्टाचार विरोधी नव निर्माण आन्दोलन में हिस्सा लिया। एक पूर्णकालिक आयोजक के रूप में कार्य करने के पश्चात् उन्हें भारतीय जनता पार्टी में संगठन का प्रतिनिधि मनोनीत किया गया।[31] किशोरावस्था में अपने भाई के साथ एक चाय की दुकान चला चुके मोदी ने अपनी स्कूली शिक्षा वड़नगर में पूरी की।[25] उन्होंने आरएसएस के प्रचारक रहते हुए 1980 में गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर परीक्षा दी और विज्ञान स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की।[32]
अपने माता-पिता की कुल छ: सन्तानों में तीसरे पुत्र नरेन्द्र ने बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में अपने पिता का भी हाथ बँटाया।[33][34] बड़नगर के ही एक स्कूल मास्टर के अनुसार नरेन्द्र हालाँकि एक औसत दर्ज़े का छात्र था, लेकिन वाद-विवाद और नाटक प्रतियोगिताओं में उसकी बेहद रुचि थी।[33] इसके अलावा उसकी रुचि राजनीतिक विषयों पर नयी-नयी परियोजनाएँ प्रारम्भ करने की भी थी।[35]
13 वर्ष की आयु में नरेन्द्र की सगाई जसोदा बेन चमनलाल के साथ कर दी गयी और जब उनका विवाह हुआ,[36] तब वह मात्र 17 वर्ष के थे। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार पति-पत्नी ने कुछ वर्ष साथ रहकर बिताये।[37] परन्तु कुछ समय बाद वे दोनों एक दूसरे के लिये अजनबी हो गये क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने उनसे कुछ ऐसी ही इच्छा व्यक्त की थी।[33] जबकि नरेन्द्र मोदी के जीवनी-लेखक ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है:[38]
"उन दोनों की शादी जरूर हुई परन्तु वे दोनों एक साथ कभी नहीं रहे। शादी के कुछ बरसों बाद नरेन्द्र मोदी ने घर त्याग दिया और एक प्रकार से उनका वैवाहिक जीवन लगभग समाप्त-सा ही हो गया।"
पिछले चार विधान सभा चुनावों में अपनी वैवाहिक स्थिति पर खामोश रहने के बाद नरेन्द्र मोदी ने कहा कि अविवाहित रहने की जानकारी देकर उन्होंने कोई पाप नहीं किया। नरेन्द्र मोदी के मुताबिक एक शादीशुदा के मुकाबले अविवाहित व्यक्ति भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जोरदार तरीके से लड़ सकता है क्योंकि उसे अपनी पत्नी, परिवार व बालबच्चों की कोई चिन्ता नहीं रहती।[39] हालांकि नरेन्द्र मोदी ने शपथ पत्र प्रस्तुत कर जसोदाबेन को अपनी पत्नी स्वीकार किया है।[40]
प्रारम्भिक सक्रियता और राजनीति
नरेन्द्र जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में प्रारम्भ हुआ|[41][42] उन्होंने शुरुआती जीवन से ही राजनीतिक सक्रियता दिखलायी और भारतीय जनता पार्टी का जनाधार मजबूत करने में प्रमुख भूमिका निभायी। गुजरात में शंकरसिंह वाघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की ही रणनीति थी।[43]
अप्रैल १९९० में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लायी, जब गुजरात में १९९५ के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनायें और इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथयात्रा जिसमें आडवाणी के प्रमुख सारथी की मूमिका में नरेन्द्र का मुख्य सहयोग रहा।[44] इसी प्रकार कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की मुरली मनोहर जोशी की दूसरी रथ यात्रा भी नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इसके बाद शंकरसिंह वाघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया, जिसके परिणामस्वरूप केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बना दिया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुला कर भाजपा में संगठन की दृष्टि से केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया।[45]
१९९५ में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पाँच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया।[46] १९९८ में उन्हें पदोन्नत करके राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व दिया गया। इस पद पर वह अक्टूबर २००१ तक काम करते रहे। भारतीय जनता पार्टी ने अक्टूबर २००१ में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र मोदी को सौंप दी।[47]
गुजरात के मुख्यमन्त्री के रूप में
2001 में केशुभाई पटेल (तत्कालीन मुख्यमंत्री) की सेहत बिगड़ने लगी थी और भाजपा चुनाव में कई सीट हार रही थी।[48] इसके बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुख्यमंत्री के रूप में मोदी को नए उम्मीदवार के रूप में रखते हैं। हालांकि भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी, मोदी के सरकार चलाने के अनुभव की कमी के कारण चिंतित थे। मोदी ने पटेल के उप मुख्यमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया और आडवाणी व अटल बिहारी वाजपेयी से बोले कि यदि गुजरात की जिम्मेदारी देनी है तो पूरी दें अन्यथा न दें। 3 अक्टूबर 2001 को यह केशुभाई पटेल के जगह गुजरात के मुख्यमंत्री बने। इसके साथ ही उन पर दिसम्बर 2002 में होने वाले चुनाव की पूरी जिम्मेदारी भी थी।[49]
2001-02
नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री का अपना पहला कार्यकाल 7 अक्टूबर 2001 से शुरू किया। इसके बाद मोदी ने राजकोट विधानसभा चुनाव लड़ा। जिसमें काँग्रेस पार्टी के आश्विन मेहता को 14,728 मतों से हराया था।[50]
नरेन्द्र मोदी अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिये समूचे राजनीतिक हलकों में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग रहते हैं, कोई भारी-भरकम अमला नहीं होता। लेकिन कर्मयोगी की तरह जीवन जीने वाले मोदी के स्वभाव से सभी परिचित हैं इस नाते उन्हें अपने कामकाज को अमली जामा पहनाने में कोई दिक्कत पेश नहीं आती। [51] उन्होंने गुजरात में कई ऐसे हिन्दू मन्दिरों को भी ध्वस्त करवाने में कभी कोई कोताही नहीं बरती जो सरकारी कानून कायदों के मुताबिक नहीं बने थे। हालाँकि इसके लिये उन्हें विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों का कोपभाजन भी बनना पड़ा, परन्तु उन्होंने इसकी रत्ती भर भी परवाह नहीं की; जो उन्हें उचित लगा करते रहे।[52] वे एक लोकप्रिय वक्ता हैं, जिन्हें सुनने के लिये बहुत भारी संख्या में श्रोता आज भी पहुँचते हैं। कुर्ता-पायजामा व सदरी के अतिरिक्त वे कभी-कभार सूट भी पहन लेते हैं। अपनी मातृभाषा गुजराती के अतिरिक्त वह हिन्दी में ही बोलते हैं।[53]
मोदी के नेतृत्व में २०१२ में हुए गुजरात विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। भाजपा को इस बार ११५ सीटें मिलीं।
गुजरात के विकास की योजनाएँ
मुख्यमन्त्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के विकास[54] के लिये जो महत्वपूर्ण योजनाएँ प्रारम्भ कीं व उन्हें क्रियान्वित कराया, उनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-
- पंचामृत योजना[55] - राज्य के एकीकृत विकास की पंचायामी योजना,
- सुजलाम् सुफलाम् - राज्य में जलस्रोतों का उचित व समेकित उपयोग, जिससे जल की बर्बादी को रोका जा सके,[56]
- कृषि महोत्सव – उपजाऊ भूमि के लिये शोध प्रयोगशालाएँ,[56]
- चिरंजीवी योजना – नवजात शिशु की मृत्युदर में कमी लाने हेतु,[56]
- मातृ-वन्दना – जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु,[57]
- बेटी बचाओ – भ्रूण-हत्या व लिंगानुपात पर अंकुश हेतु,[56]
- ज्योतिग्राम योजना – प्रत्येक गाँव में बिजली पहुँचाने हेतु,[58][59]
- कर्मयोगी अभियान – सरकारी कर्मचारियों में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा जगाने हेतु,[56]
- कन्या कलावाणी योजना – महिला साक्षरता व शिक्षा के प्रति जागरुकता,[56]
- बालभोग योजना – निर्धन छात्रों को विद्यालय में दोपहर का भोजन,[60]
मोदी का वनबन्धु विकास कार्यक्रम
उपरोक्त विकास योजनाओं के अतिरिक्त मोदी ने आदिवासी व वनवासी क्षेत्र के विकास हेतु गुजरात राज्य में वनबन्धु विकास[61] हेतु एक अन्य दस सूत्री कार्यक्रम भी चला रखा है जिसके सभी १० सूत्र निम्नवत हैं:
- १-पाँच लाख परिवारों को रोजगार
- २-उच्चतर शिक्षा की गुणवत्ता
- ३-आर्थिक विकास
- ४-स्वास्थ्य
- ५-आवास
- ६-साफ स्वच्छ पेय जल
- ७-सिंचाई
- ८-समग्र विद्युतीकरण
- ९-प्रत्येक मौसम में सड़क मार्ग की उपलब्धता
- १०-शहरी विकास।
श्यामजीकृष्ण वर्मा की अस्थियों का भारत में संरक्षण
नरेन्द्र मोदी ने प्रखर देशभक्त एवं आर्यसमाज के संस्थापक सवामी दयानंद सरस्वती के शिष्य श्यामजी कृष्ण वर्मा व उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत की स्वतन्त्रता के ५५ वर्ष बाद २२ अगस्त २००३ को स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से स्वदेश वापस मँगाया[62] और माण्डवी (श्यामजी के जन्म स्थान) में क्रान्ति-तीर्थ के नाम से एक पर्यटन स्थल बनाकर उसमें उनकी स्मृति को संरक्षण प्रदान किया।[63] मोदी द्वारा १३ दिसम्बर २०१० को राष्ट्र को समर्पित इस क्रान्ति-तीर्थ को देखने दूर-दूर से पर्यटक गुजरात आते हैं।[64] गुजरात सरकार का पर्यटन विभाग इसकी देखरेख करता है।[65]
विचार
आतंकवाद
१८ जुलाई २००६ को मोदी ने एक भाषण में आतंकवाद निरोधक अधिनियम जैसे आतंकवाद-विरोधी विधान लाने के विरूद्ध उनकी अनिच्छा को लेकर भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना की। मुंबई की उपनगरीय रेलों में हुए बम विस्फोटों के मद्देनज़र उन्होंने केन्द्र सरकार से राज्यों को सख्त कानून लागू करने के लिए सशक्त करने की माँग की।[66] उनके शब्दों में -
आतंकवाद युद्ध से भी बदतर है। एक आतंकवादी के कोई नियम नहीं होते। एक आतंकवादी तय करता है कि कब, कैसे, कहाँ और किसको मारना है। भारत ने युद्धों की तुलना में आतंकी हमलों में अधिक लोगों को खोया है।[66]
नरेंद्र मोदी ने कई अवसरों पर कहा था कि यदि भाजपा केन्द्र में सत्ता में आई, तो वह सन् २००४ में उच्चतम न्यायालय द्वारा अफज़ल गुरु को फाँसी दिए जाने के निर्णय का सम्मान करेगी। भारत के उच्चतम न्यायालय ने अफज़ल को २००१ में भारतीय संसद पर हुए हमले के लिए दोषी ठहराया था एवं ९ फ़रवरी २०१३ को तिहाड़ जेल में उसे फाँसी पर लटकाया गया।[67]
मुसलमान
यद्यपि मुसलमानों के बीच एक लोकप्रिय चेहरा नहीं है, लेकिन नरेंद्र मोदी मुसलमानों के विकास में रुचि रखते हैं।[68] कई मुस्लिम नेताओं और विद्वानों ने 2002 के गुजरात दंगों और उनकी चरम हिंदुत्ववादी सोच में उनकी कथित भूमिका के कारण नरेंद्र मोदी की आलोचना की है।[69] हालाँकि जफर सरेशवाला जैसे कई मुस्लिम नेताओं ने उनकी और उनकी नीतियों का समर्थन किया।[70] वह अक्सर मुसलमानों के समग्र अभिन्न विकास के बारे में बात करते हैं, जिसमें उन्होंने कहा था[71]: -
मुसलमानों के एक हाथ में कंप्यूटर और दूसरे हाथ में कुरान होना चाहिए।
विवाद एवं आलोचनाएँ
हिंदू राष्ट्रवाद
27 फ़रवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात वापस लौट कर आ रहे कारसेवकों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में मुसलमानों की हिंसक भीड़ द्वारा आग लगा कर जिन्दा जला दिया गया। इस हादसे में 59 कारसेवक मारे गये थे।[72] रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले 1180 लोगों में अधिकांश संख्या अल्पसंख्यकों की थी। इसके लिये न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया।[53] कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की माँग की।[73][74] मोदी ने गुजरात की दसवीं विधानसभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।[75][76] राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल १८२ सीटों में से १२७ सीटों पर जीत हासिल की।
अप्रैल २००९ में भारत के उच्चतम न्यायालय ने विशेष जाँच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं।[53] यह विशेष जाँच दल दंगों में मारे गये काँग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा ज़ाकिया ज़ाफ़री की शिकायत पर भेजा गया था।[77] दिसम्बर 2010 में उच्चतम न्यायालय ने एस॰ आई॰ टी॰ की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़़ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।[78]
उसके बाद फरवरी 2011 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने यह आरोप लगाया कि रिपोर्ट में कुछ तथ्य जानबूझ कर छिपाये गये हैं[79] और सबूतों के अभाव में नरेन्द्र मोदी को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता।[80][81] इंडियन एक्सप्रेस ने भी यह लिखा कि रिपोर्ट में मोदी के विरुद्ध साक्ष्य न मिलने की बात भले ही की हो किन्तु अपराध से मुक्त तो नहीं किया।[82] द हिन्दू में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ़ इतनी भयंकर त्रासदी पर पानी फेरा अपितु प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न गुजरात के दंगों में मुस्लिम उग्रवादियों के मारे जाने को भी उचित ठहराया।[83]भारतीय जनता पार्टी ने माँग की कि एस॰ आई॰ टी॰ की रिपोर्ट को लीक करके उसे प्रकाशित करवाने के पीछे सत्तारूढ़ काँग्रेस पार्टी का राजनीतिक स्वार्थ है इसकी भी उच्चतम न्यायालय द्वारा जाँच होनी चाहिये।[84]
सुप्रीम कोर्ट ने बिना कोई फैसला दिये अहमदाबाद के ही एक मजिस्ट्रेट को इसकी निष्पक्ष जाँच करके अविलम्ब अपना निर्णय देने को कहा।[85] अप्रैल 2012 में एक अन्य विशेष जाँच दल ने फिर ये बात दोहरायी कि यह बात तो सच है कि ये दंगे भीषण थे परन्तु नरेन्द्र मोदी का इन दंगों में कोई भी प्रत्यक्ष हाथ नहीं।[86] 7 मई 2012 को उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जज राजू रामचन्द्रन ने यह रिपोर्ट पेश की कि गुजरात के दंगों के लिये नरेन्द्र मोदी पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153 ए (1) (क) व (ख), 153 बी (1), 166 तथा 505 (2) के अन्तर्गत विभिन्न समुदायों के बीच बैमनस्य की भावना फैलाने के अपराध में दण्डित किया जा सकता है।[87] हालांकि रामचन्द्रन की इस रिपोर्ट पर विशेष जाँच दल (एस०आई०टी०) ने आलोचना करते हुए इसे दुर्भावना व पूर्वाग्रह से परिपूर्ण एक दस्तावेज़ बताया।[88]
26 जुलाई 2012 को नई दुनिया के सम्पादक शाहिद सिद्दीकी को दिये गये एक इण्टरव्यू में नरेन्द्र मोदी ने साफ शब्दों में कहा - "2004 में मैं पहले भी कह चुका हूँ, 2002 के साम्प्रदायिक दंगों के लिये मैं क्यों माफ़ी माँगूँ? यदि मेरी सरकार ने ऐसा किया है तो उसके लिये मुझे सरे आम फाँसी दे देनी चाहिये।" मुख्यमन्त्री ने गुरुवार को नई दुनिया से फिर कहा- “अगर मोदी ने अपराध किया है तो उसे फाँसी पर लटका दो। लेकिन यदि मुझे राजनीतिक मजबूरी के चलते अपराधी कहा जाता है तो इसका मेरे पास कोई जवाब नहीं है।"
यह कोई पहली बार नहीं है जब मोदी ने अपने बचाव में ऐसा कहा हो। वे इसके पहले भी ये तर्क देते रहे हैं कि गुजरात में और कब तक गुजरे ज़माने को लिये बैठे रहोगे? यह क्यों नहीं देखते कि पिछले एक दशक में गुजरात ने कितनी तरक्की की? इससे मुस्लिम समुदाय को भी तो फायदा पहुँचा है।
लेकिन जब केन्द्रीय क़ानून मन्त्री सलमान खुर्शीद से इस बावत पूछा गया तो उन्होंने दो टूक जवाब दिया - "पिछले बारह वर्षों में यदि एक बार भी गुजरात के मुख्यमन्त्री के ख़िलाफ़़ एफ॰ आई॰ आर॰ दर्ज़ नहीं हुई तो आप उन्हें कैसे अपराधी ठहरा सकते हैं? उन्हें कौन फाँसी देने जा रहा है?"[89]
बाबरी मस्जिद के लिये पिछले 45 सालों से कानूनी लड़ाई लड़ रहे 92 वर्षीय मोहम्मद हाशिम अंसारी के मुताबिक भाजपा में प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के प्रान्त गुजरात में सभी मुसलमान खुशहाल और समृद्ध हैं। जबकि इसके उलट कांग्रेस हमेशा मुस्लिमों में मोदी का भय पैदा करती रहती है।[90]
सितंबर 2014 की भारत यात्रा के दौरान ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने कहा कि नरेंद्र मोदी को 2002 के दंगों के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए क्योंकि वह उस समय मात्र एक 'पीठासीन अधिकारी' थे जो 'अनगिनत जाँचों' में पाक साफ साबित हो चुके हैं।[91]
कमजोर अर्थव्यवस्था
नरेंद्र मोदी की सरकार अच्छी आर्थिक वृद्धि के लिए जानी जाती है, लेकिन 2018 से जीएसटी और 2017 के विमुद्रीकरण जैसे कदमों के कारण, मोदी सरकार के अधीन अर्थव्यवस्था कम रही है।[92]
२०१४ लोकसभा चुनाव
प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार
गोआ में भाजपा कार्यसमिति द्वारा नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोक सभा चुनाव अभियान की कमान सौंपी गयी थी।[93] १३ सितम्बर २०१३ को हुई संसदीय बोर्ड की बैठक में आगामी लोकसभा चुनावों के लिये प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। इस अवसर पर पार्टी के शीर्षस्थ नेता लालकृष्ण आडवाणी मौजूद नहीं रहे और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने इसकी घोषणा की।[94][95] मोदी ने प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद चुनाव अभियान की कमान राजनाथ सिंह को सौंप दी। प्रधानमन्त्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद मोदी की पहली रैली हरियाणा प्रान्त के रिवाड़ी शहर में हुई।[96]
एक सांसद प्रत्याशी के रूप में उन्होंने देश की दो लोकसभा सीटों वाराणसी तथा वडोदरा से चुनाव लड़ा और दोनों निर्वाचन क्षेत्रों से भारी मतों से विजयी हुए।[16][17][97]
लोक सभा चुनाव २०१४ में मोदी की स्थिति
न्यूज़ एजेंसीज व पत्रिकाओं द्वारा किये गये तीन प्रमुख सर्वेक्षणों ने नरेन्द्र मोदी को प्रधान मन्त्री पद के लिये जनता की पहली पसन्द बताया था।[98][99][100] एसी वोटर पोल सर्वे के अनुसार नरेन्द्र मोदी को पीएम पद का प्रत्याशी घोषित करने से एनडीए के वोट प्रतिशत में पाँच प्रतिशत के इजाफ़े के साथ १७९ से २२० सीटें मिलने की सम्भावना व्यक्त की गयी।[100] सितम्बर २०१३ में नीलसन होल्डिंग और इकोनॉमिक टाइम्स ने जो परिणाम प्रकाशित किये थे उनमें शामिल शीर्षस्थ १०० भारतीय कार्पोरेट्स में से ७४ कारपोरेट्स ने नरेन्द्र मोदी तथा ७ ने राहुल गान्धी को बेहतर प्रधानमन्त्री बतलाया था।[101][102] नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन मोदी को बेहतर प्रधान मन्त्री नहीं मानते ऐसा उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था। उनके विचार से मुस्लिमों में उनकी स्वीकार्यता संदिग्ध हो सकती है जबकि जगदीश भगवती और अरविन्द पानगढ़िया को मोदी का अर्थशास्त्र बेहतर लगता है।[103] योग गुरु स्वामी रामदेव व मुरारी बापू जैसे कथावाचक ने नरेन्द्र मोदी का समर्थन किया।[104]
पार्टी की ओर से पीएम प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पूरे भारत का भ्रमण किया। इस दौरान तीन लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे देश में ४३७ बड़ी चुनावी रैलियाँ, ३-डी सभाएँ व चाय पर चर्चा आदि को मिलाकर कुल ५८२७ कार्यक्रम किये। चुनाव अभियान की शुरुआत उन्होंने २६ मार्च २०१४ को मां वैष्णो देवी के आशीर्वाद के साथ जम्मू से की और समापन मंगल पांडे की जन्मभूमि बलिया में किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की जनता ने एक अद्भुत चुनाव प्रचार देखा।[105] यही नहीं, नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने २०१४ के चुनावों में अभूतपूर्व सफलता भी प्राप्त की।
परिणाम
चुनाव में जहाँ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ३३६ सीटें जीतकर सबसे बड़े संसदीय दल के रूप में उभरा वहीं अकेले भारतीय जनता पार्टी ने २८२ सीटों पर विजय प्राप्त की। काँग्रेस केवल ४४ सीटों पर सिमट कर रह गयी और उसके गठबंधन को केवल ५९ सीटों से ही सन्तोष करना पड़ा।[15] नरेन्द्र मोदी स्वतन्त्र भारत में जन्म लेने वाले ऐसे व्यक्ति हैं जो सन २००१ से २०१४ तक लगभग १३ साल गुजरात के १४वें मुख्यमन्त्री रहे और भारत के १४वें प्रधानमन्त्री बने।
एक ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि नेता-प्रतिपक्ष के चुनाव हेतु विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा क्योंकि किसी भी एक दल ने कुल लोकसभा सीटों के १० प्रतिशत का आँकड़ा ही नहीं छुआ।
भाजपा संसदीय दल के नेता निर्वाचित
२० मई २०१४ को संसद भवन में भारतीय जनता पार्टी द्वारा आयोजित भाजपा संसदीय दल एवं सहयोगी दलों की एक संयुक्त बैठक में जब लोग प्रवेश कर रहे थे तो नरेन्द्र मोदी ने प्रवेश करने से पूर्व संसद भवन को ठीक वैसे ही जमीन पर झुककर प्रणाम किया जैसे किसी पवित्र मन्दिर में श्रद्धालु प्रणाम करते हैं। संसद भवन के इतिहास में उन्होंने ऐसा करके समस्त सांसदों के लिये उदाहरण पेश किया। बैठक में नरेन्द्र मोदी को सर्वसम्मति से न केवल भाजपा संसदीय दल अपितु एनडीए का भी नेता चुना गया। राष्ट्रपति ने नरेन्द्र मोदी को भारत का १५वाँ प्रधानमन्त्री नियुक्त करते हुए इस आशय का विधिवत पत्र सौंपा। नरेन्द्र मोदी ने सोमवार २६ मई २०१४ को प्रधानमन्त्री पद की शपथ ली।[3]
वडोदरा सीट से इस्तीफ़ा दिया
नरेन्द्र मोदी ने २०१४ के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक अन्तर से जीती गुजरात की वडोदरा सीट से इस्तीफ़ा देकर संसद में उत्तर प्रदेश की वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया और यह घोषणा की कि वह गंगा की सेवा के साथ इस प्राचीन नगरी का विकास करेंगे।[106]
पहला प्रधान मंत्री कार्यकाल
प्रथम शपथ ग्रहण समारोह
नरेन्द्र मोदी का २६ मई २०१४ से भारत के १५वें प्रधानमन्त्री का कार्यकाल राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में आयोजित शपथ ग्रहण के पश्चात प्रारम्भ हुआ।[107] मोदी के साथ ४५ अन्य मन्त्रियों ने भी समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ ली।[108] प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी सहित कुल ४६ में से ३६ मन्त्रियों ने हिन्दी में जबकि १० ने अंग्रेज़ी में शपथ ग्रहण की।[109] समारोह में विभिन्न राज्यों और राजनीतिक पार्टियों के प्रमुखों सहित सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया गया।[110][111] इस घटना को भारतीय राजनीति की राजनयिक कूटनीति के रूप में भी देखा जा रहा है।
सार्क देशों के जिन प्रमुखों ने समारोह में भाग लिया उनके नाम इस प्रकार हैं।[112]
- अफ़्गानिस्तान – राष्ट्रपति हामिद करज़ई[113]
- बांग्लादेश – संसद की अध्यक्ष शिरीन शर्मिन चौधरी[114][115]
- भूटान – प्रधानमन्त्री शेरिंग तोबगे[116]
- मालदीव – राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम[117][118]
- मॉरिशस – प्रधानमन्त्री नवीनचन्द्र रामगुलाम[119]
- नेपाल – प्रधानमन्त्री सुशील कोइराला[120]
- पाकिस्तान – प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ़[121]
- श्रीलंका – प्रधानमन्त्री महिन्दा राजपक्षे[122]
ऑल इण्डिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (अन्ना द्रमुक) और राजग का घटक दल मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कझगम (एमडीएमके) नेताओं ने नरेन्द्र मोदी सरकार के श्रीलंकाई प्रधानमंत्री को आमंत्रित करने के फैसले की आलोचना की।[123][124] एमडीएमके प्रमुख वाइको ने मोदी से मुलाकात की और निमंत्रण का फैसला बदलवाने की कोशिश की जबकि कांग्रेस नेता भी एमडीएमके और अन्ना द्रमुक आमंत्रण का विरोध कर रहे थे।[125] श्रीलंका और पाकिस्तान ने भारतीय मछुवारों को रिहा किया। मोदी ने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित देशों के इस कदम का स्वागत किया।[126]
इस समारोह में भारत के सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया गया था। इनमें से कर्नाटक के मुख्यमंत्री, सिद्धारमैया (कांग्रेस) और केरल के मुख्यमंत्री, उम्मन चांडी (कांग्रेस) ने भाग लेने से मना कर दिया।[127] भाजपा और कांग्रेस के बाद सबसे अधिक सीटों पर विजय प्राप्त करने वाली तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने समारोह में भाग न लेने का निर्णय लिया जबकि पश्चिम बंगाल के मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी ने अपनी जगह मुकुल रॉय और अमित मिश्रा को भेजने का निर्णय लिया।[128][129]
वड़ोदरा के एक चाय विक्रेता किरण महिदा, जिन्होंने मोदी की उम्मीदवारी प्रस्तावित की थी, को भी समारोह में आमन्त्रित किया गया। अलवत्ता मोदी की माँ हीराबेन और अन्य तीन भाई समारोह में उपस्थित नहीं हुए, उन्होंने घर में ही टीवी पर लाइव कार्यक्रम देखा।[130]
मंत्रिमंडल
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नृपेंद्र मिश्रा को अपने प्रधान सचिव और अजीत डोभाल को कार्यालय में अपने पहले सप्ताह में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) के रूप में नियुक्त किया। उन्होंने आईएएस अधिकारी ए.के. शर्मा और भारतीय वन सेवा अधिकारी भारत लाल प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में संयुक्त सचिव के रूप में कार्यरत हैं।[131]
दोनों अधिकारी मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान गुजरात में मोदी की सरकार का हिस्सा थे।[132] 31 मई 2014 को, प्रधान मंत्री मोदी ने सभी मौजूदा मंत्रियों के समूह (GoMs) और मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (EGoMs) को समाप्त कर दिया। पीएमओ के एक बयान में बताया गया है, "यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेजी लाएगा और प्रणाली में अधिक जवाबदेही की शुरूआत करेगा। मंत्रालय और विभाग अब ईजीओएम और गोम्स के समक्ष लंबित मुद्दों पर कार्रवाई करेंगे और मंत्रालयों के स्तर पर उचित निर्णय लेंगे। विभागों को ही "। UPA-II सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान 68 GoM और 14 EGoM की स्थापना की थी, जिनमें से 9 EGoM और 21 GoM को नई सरकार द्वारा विरासत में मिली थी।[133] भारतीय मीडिया द्वारा इस कदम को "न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन" की मोदी की नीति के साथ संरेखण में बताया गया। इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि GoMs और EGoMs "पिछली यूपीए सरकार के दौरान एक प्रतीक और नीतिगत पक्षाघात का एक साधन" बन गए थे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने नई सरकार के फैसले को "निर्णय लेने में केंद्रीय मंत्रिमंडल के अधिकार को बहाल करने और मंत्रिस्तरीय योग्यता सुनिश्चित करने के लिए एक कदम" के रूप में वर्णित किया। ग्रामीण विकास, पंचायती राज के प्रभारी और पेयजल और स्वच्छता विभागों के नए नियुक्त कैबिनेट मंत्री गोपीनाथ मुंडे की 3 जून 2014 को दिल्ली में एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई।[134] कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी, जो सड़क परिवहन के प्रभारी हैं। 4 जून को मुंडे के पोर्टफोलियो की देखभाल के लिए राजमार्गों और शिपिंग को सौंपा गया था।[135]
10 जून 2014 को, सरकार को नीचा दिखाने के लिए एक अन्य कदम में, मोदी ने मंत्रिमंडल की चार स्थायी समितियों को समाप्त कर दिया। उन्होंने पांच महत्वपूर्ण कैबिनेट समितियों के पुनर्गठन का भी निर्णय लिया। इनमें कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) शामिल है जो सभी उच्च-स्तरीय रक्षा और सुरक्षा मामलों को संभालती है, कैबिनेट की नियुक्ति समिति (ACC) जो राष्ट्रपति को सभी वरिष्ठ नौकरशाही नियुक्तियों और पोस्टिंग की सिफारिश करती है, कैबिनेट कमिटी ऑन पोलिस अफेयर्स (CCPA) जो एक प्रकार की छोटी कैबिनेट और संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति है।[136]
प्रधान मंत्री और मंत्रिपरिषद ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद, 24 मई 2019 को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को अपना इस्तीफा सौंप दिया। राष्ट्रपति ने इस्तीफे स्वीकार कर लिए और मंत्रिपरिषद से अनुरोध किया कि वे नई सरकार के पद संभालने तक जारी रहें।[137]
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण उपाय
- भ्रष्टाचार से सम्बन्धित विशेष जाँच दल (SIT) की स्थापना।
- योजना आयोग की समाप्ति की घोषणा।
- समस्त भारतीयों के अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में समावेशन हेतु प्रधानमंत्री जन धन योजना का आरम्भ।
- रक्षा उत्पादन क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति।
- ४५% का कर देकर काला धन घोषित करने की छूट।
- सातवें केन्द्रीय वेतन आयोग की सिफारिसों की स्वीकृति।
- रेल बजट प्रस्तुत करने की प्रथा की समाप्ति।
- काले धन तथा समान्तर अर्थव्यवस्था को समाप्त करने के लिये ८ नवम्बर २०१६ से ५०० तथा १००० के प्रचलित नोटों को अमान्य करना।
भारत के अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध
- शपथग्रहण समारोह में समस्त सार्क देशों को आमंत्रण।
- सर्वप्रथम विदेश यात्रा के लिए भूटान का चयन।
- ब्रिक्स सम्मेलन में नए विकास बैंक की स्थापना।
- नेपाल यात्रा में पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा।
- अमेरिका व चीन से पहले जापान की यात्रा।
- पाकिस्तान को अन्तरराष्ट्रीय जगत में अलग-थलग करने में सफल।
- जुलाई २०१७ में इजराइल की यात्रा, इजराइल के साथ सम्बन्धों में नये युग का आरम्भ।
सूचना प्रौद्योगिकी
डिजिटल इंडिया 1 जुलाई 2015 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया एक अभियान है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सरकार की सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप से ऑनलाइन बुनियादी ढांचे में सुधार करके और इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ाने या देश को प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में डिजिटल रूप से सशक्त बनाने के लिए नागरिकों को उपलब्ध कराया जाए।[138] इस पहल में ग्रामीण क्षेत्रों को हाई-स्पीड इंटरनेट नेटवर्क से जोड़ने की योजना शामिल है।[139] डिजिटल इंडिया में तीन मुख्य घटक होते हैं: सुरक्षित और स्थिर डिजिटल बुनियादी ढांचे का विकास, सरकारी सेवाओं को डिजिटल रूप से वितरित करना, और सार्वभौमिक डिजिटल साक्षरता।[140]
स्वास्थ्य एवं स्वच्छता
भारत के प्रधानमन्त्री बनने के बाद 2 अक्टूबर 2014 को नरेन्द्र मोदी ने देश में साफ-सफाई को बढ़ावा देने के लिए स्वच्छ भारत अभियान का शुभारम्भ किया।[141] उसके बाद पिछले साढे चार वर्षों में मोदी सरकार ने कई ऐसी पहलें की जिनकी जनता के बीच खूब चर्चा रही।[142] स्वच्छता भारत अभियान भी ऐसी ही पहलों में से एक हैं। सरकार ने जागरुकता अभियान के तहत लोगों को सफाई के लिए प्रेरित करने की दिशा में कदम उठाए। देश को खुले में शौच मुक्त करने के लिए भी अभियान के तहत प्रचार किया। साथ ही देश भर में शौचालयों का निर्माण भी कराया गया। सरकार ने देश में साफ सफाई के खर्च को बढ़ाने के लिए स्वच्छ भारत चुंगी (सेस) की भी शुरुआत की।[143]
स्वच्छ भारत मिशन का प्रतीक गांधी जी का चश्मा रखा गया और साथ में एक 'एक कदम स्वच्छता की ओर' टैग लाइन भी रखी गई।[144][145]
स्वच्छ भारत अभियान के सफल कार्यान्वयन हेतु भारत के सभी नागरिकों से इस अभियान से जुड़ने की अपील की। इस अभियान का उद्देश्य पांच वर्ष में स्वच्छ भारत का लक्ष्य प्राप्त करना है ताकि बापू की 150वीं जयंती को इस लक्ष्य की प्राप्ति के रूप में मनाया जा सके। स्वच्छ भारत अभियान सफाई करने की दिशा में प्रतिवर्ष 100 घंटे के श्रमदान के लिए लोगों को प्रेरित करता है।[146]
प्रधानमंत्री ने मृदुला सिन्हा, सचिन तेंदुलकर, बाबा रामदेव, शशि थरूर, अनिल अम्बानी, कमल हसन, सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा और तारक मेहता का उल्टा चश्मा की टीम जैसी नौ नामचीन हस्तियों को आमंत्रित किया कि वे भी स्वच्छ भारत अभियान में अपना सहयोग प्रदान करें। लोगों से कहा गया कि वे सफाई अभियानों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा करें और अन्य नौ लोगों को भी अपने साथ जोड़ें ताकि यह एक शृंखला बन जाए। आम जनता को भी सोशल मीडिया पर हैश टैग #MyCleanIndia लिखकर अपने सहयोग को साझा करने के लिए कहा गया।[147]
एक कदम स्वच्छता की ओर : मोदी सरकार ने एक ऐसा रचनात्मक और सहयोगात्मक मंच प्रदान किया है जो राष्ट्रव्यापी आंदोलन की सफलता सुनिश्चित करता है। यह मंच प्रौद्योगिकी के माध्यम से नागरिकों और संगठनों के अभियान संबंधी प्रयासों के बारे में जानकारी प्रदान करता है। कोई भी व्यक्ति, सरकारी संस्था या निजी संगठन अभियान में भाग ले सकते हैं। इस अभियान का उद्देश्य लोगों को उनके दैनिक कार्यों में से कुछ घंटे निकालकर भारत में स्वच्छता संबंधी कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना है।[148]
स्वच्छता ही सेवा : प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने 15 सितम्बर २०१८ को 'स्वच्छता ही सेवा' अभियान आरम्भ किया और जन-मानस को इससे जुड़ने का आग्रह किया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के 150 जयंती वर्ष के औपचारिक शुरुआत से पहले 15 सितम्बर से 2 अक्टूबर तक स्वच्छता ही सेवा कार्यक्रम का बड़े पैमाने पर आयोजन किया जा रहा है। इससे पहले मोदी ने समाज के विभिन्न वर्गों के करीब 2000 लोगों को पत्र लिख कर इस सफाई अभियान का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया, ताकि इस अभियान को सफल बनाया जा सके।[149]
रक्षा नीति
भारतीय सशस्त्र बलों को आधुनिक बनाने एवं उनका विस्तार करने के लिये मोदी के नेतृत्व वाली नई सरकार ने रक्षा पर खर्च को बढ़ा दिया है। सन २०१५ में रक्षा बजट ११% बढ़ा दिया गया। सितम्बर २०१५ में उनकी सरकार ने समान रैंक समान पेंशन (वन रैंक वन पेन्शन) की बहुत लम्बे समय से की जा रही माँग को स्वीकार कर लिया।[150]
मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर भारत के नागा विद्रोहियों के साथ शान्ति समझौता किया जिससे १९५० के दशक से चला आ रहा नागा समस्या का समाधान निकल सके।[151]
- २९ सितम्बर, २०१६ को नियन्त्रण रेखा के पार सर्जिकल स्ट्राइक।[152]
- सीमा पर चीन की मनमानी का कड़ा विरोध और प्रतिकार।[153] (डोकलाम विवाद 2017 देखें)
- 26 फरवरी 2019 को, मोदी पाकिस्तान में बालाकोट आतंकवादी शिविर में हवाई हमले को अधिकृत करता है।[154]
घरेलू नीति
- हजारों एन जी ओ का पंजीकरण रद्द करना।
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को 'अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय' न मानना।
- तीन बार तलाक कहकर तलाक देने के विरुद्ध निर्णय।
- जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर लगाम।
आमजन से जुड़ने की मोदी की पहल
देश की आम जनता की बात जाने और उन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए नरेंद्र मोदी ने 'मन की बात' कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम के माध्यम से मोदी ने लोगों के विचारों को जानने की कोशिश की और साथ ही साथ उन्होंने लोगों से स्वच्छता अभियान सहित विभिन्न योजनाओं से जुड़ने की अपील की।[155]
अन्य
- ७० वर्ष से अधिक उम्र के सांसदों एवं विधायकों को मंत्रिपद न देने का कड़ा निर्णय।[156]
२०१९ लोक सभा चुनाव
प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार
13 अक्टूबर 2018 को वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने प्रधान मंत्री के रूप में फिर से नियुक्त किया था |[157] पार्टी के मुख्य प्रचारक भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह थे। मोदी ने आम चुनाव से पहले मैं भी चौकीदार हूं अभियान की शुरुआत की।[158] वर्ष 2018 में, आंध्र प्रदेश के लिए विशेष दर्जे के मामले को लेकर एनडीए से अलग पार्टी का दूसरा, तेलुगु देशम पार्टी का विभाजन हो गया।[159] नरेंद्र मोदी द्वारा अपने पहले प्रीमियर में किए गए विकास और शानदार काम को देखते हुए उन्हें 2019 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री के लिए उम्मीदवार और मुख्य चेहरे के रूप में फिर से घोषित किया गया था।[160]
लोक सभा चुनाव २०१९ में मोदी की स्थिति
पूरे 2019 के चुनाव अभियान में, नरेंद्र मोदी ने भारत के प्रधान मंत्री के एकमात्र चेहरे के रूप में चित्रित किया।[161] इसके कारण, चुनाव को लोकतंत्र में टकराव के रूप में देखा गया और इसे एकदलीय प्रणाली का भोर कहा गया।[162][163] विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए कोई मजबूत चेहरा भी नहीं था।[164] कई हिंदू नेताओं और संतों ने अपने हिंदुत्व के आदर्शों के कारण अपने अनुयायियों से नरेंद्र मोदी को वोट देने का आग्रह किया।[165] कई बॉलीवुड अभिनेता और अभिनेताओं जैसे विवेक ओबेरॉय, कंगना रनौत, हंसराज हंस, अनुपम खेर, पायल रोहतगी और अन्य ने भी लोगों से आगामी चुनाव में नरेंद्र मोदी को वोट देने का आग्रह किया।[166][167] अनुराग कश्यप, नसीरुद्दीन शाह सहित बॉलीवुड के कई अभिनेताओं और अभिनेत्रियों और अन्य लोगों ने भारत में धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए जनता से नरेंद्र मोदी के खिलाफ वोट करने के लिए कहा।[168] देश में हिंदू राष्ट्रवाद के उदय के कारण मुसलमानों और ईसाइयों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की चिंता पर विपक्ष ने भी मोदी की आलोचना की।[169][170] मोदी ने रक्षा की बात की और राष्ट्र सुरक्षा को चुनाव प्रचार के लिए सबसे महत्वपूर्ण विषयों में से एक के रूप में देखा गया, खासकर पुलवामा हमले के बाद और बालाकोट हवाई हमले के जवाबी हमले को मोदी प्रशासन की उपलब्धि के रूप में गिना गया।[171]
परिणाम
मोदी ने वाराणसी से उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा। उन्होंने समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव को हराकर सीट जीती, जिन्होंने सपा-बसपा गठबंधन को 479,505 मतों के अंतर से हराया।[172] गठबंधन के बाद दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद मोदी को दूसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन द्वारा सर्वसम्मति से प्रधान मंत्री नियुक्त किया गया, अकेले भाजपा के साथ 303 सीटें जीतकर लोकसभा में 353 सीटें हासिल कीं।[173]
दूसरा प्रधान मंत्री कार्यकाल
दूसरा शपथ ग्रहण समारोह
भारतीय जनता पार्टी के संसदीय नेता नरेंद्र मोदी ने ३० मई २०१९ को भारत के १५ वें प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ग्रहण के बाद अपना कार्यकाल शुरू किया। मोदी के साथ कई अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ली। इस समारोह को मीडिया द्वारा सभी बिम्सटेक देशों के प्रमुखों द्वारा भाग लेने के लिए किसी भारतीय प्रधान मंत्री के शपथ ग्रहण समारोह के लिए नोट किया गया था।[174]
पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आठ विदेशी नेता शामिल हुए।[b]
- बांग्लादेश - अब्दुल हमीद, बांग्लादेश के राष्ट्रपति ने पीएम शेख हसीना की ओर से इस समारोह में भाग लिया और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के महत्व को दोहराया।[175]
- Bhutan - भूटान की ओर से समारोह में प्रधानमंत्री लोटे त्शेरिंग ने भाग लिया।[176]
- किर्गिज़स्तान - किर्गिज़ गणराज्य से राष्ट्रपति और अतिथि के रूप में राष्ट्रपति सोरोंब्बे जेनेबकोव। नेता ने एससीओ शिखर सम्मेलन के लिए मोदी को अपना निमंत्रण दोहराया जो कि किर्गिस्तान में होने वाला है।
- मॉरिशस - मॉरीशस के अतिथि के रूप में पीएम प्रवीण जुगनौत।[177]
- म्यान्मार - म्यांमार के राष्ट्रपति विन म्यिंट ने राज्य काउंसलर दाऊ आंग सान सू की की ओर से इस समारोह में भाग लिया, जो यूरोप की यात्रा पर थीं। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने म्यांमार को भारत की अधिनियम पूर्व नीति का "स्तंभ" बताया।[178]
- नेपाल - इस समारोह में प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओली ने भाग लिया। ओली ने राष्ट्रपति भंडारी द्वारा भारतीय राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को दिए गए निमंत्रण को स्वीकार किया।[179]
- थाईलैंड - विशेष दूत ग्रिसदा बूनराच ने थाईलैंड से एक प्रतिनिधि और अतिथि के रूप में समारोह में भाग लिया।[180]
- श्रीलंका - श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने इस समारोह में भाग लिया और जून में नरेंद्र मोदी को श्रीलंका की यात्रा के लिए आमंत्रित किया। यह यात्रा 7 से 9 जून के बीच निर्धारित की गई थी।[181]
सभी भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रितों के बीच सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि, ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी समारोह में शामिल नहीं हो पाए। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया।[182] इसके अलावा, राहुल गांधी, सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्रियों सहित विभिन्न विपक्षी नेताओं को आमंत्रित किया गया था। कई भारतीय व्यापारियों, खिलाड़ियों और फिल्म कलाकारों ने भी आमंत्रित मेहमानों की सूची में जगह बनाई। पश्चिम बंगाल में टीएमसी द्वारा कथित हिंसा में मारे गए भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवारों को भी समारोह में आमंत्रित किया गया था। सभी प्रमुख धर्मों से संबंधित कई धार्मिक नेताओं को भी आमंत्रित किया गया था।[183][184]
दूसरा कैबिनेट
भारत गणराज्य का 22 वां मंत्रालय, नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद है जिसका गठन 2019 के आम चुनाव के बाद किया गया था जो 2019 में सात चरणों में हुआ था। चुनाव के परिणाम 23 मई 2019 को घोषित किए गए थे।[185] इसने 17 वीं लोकसभा का गठन किया।[186] रायसीना हिल में राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया। इस समारोह में BIMSTEC देशों के प्रमुखों को सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।[b] उनकी दूसरी कैबिनेट में 54 मंत्री शामिल थे और वर्तमान में 51 मंत्री हैं।[187] इससे पहले अरविंद सावंत भी कैबिनेट में थे लेकिन गठबंधन से शिवसेना के टूटने के कारण इस्तीफा दे दिया।[188] केंद्रीय मंत्री, शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने भी किसान बिल विरोध के कारण गठबंधन छोड़ दिया था।[189] 8 अक्टूबर 2020 को राम विलास पासवान का निधन हो गया और बाद में उनके बेटे, चिराग पासवान ने जद (यू) के साथ खराब संबंध के कारण गठबंधन छोड़ दिया।[190]
ग्रन्थ
व्यक्तिगत जीवन और छवि
सार्वजनिक छवि
घांची परंपरा के अनुसार, मोदी की शादी उनके माता-पिता ने तब की थी जब वह एक बच्चे थे। वह 13 साल की उम्र में जशोदाबेन मोदी से सगाई कर रहे थे, जब वह 18 साल की थीं, तब उन्होंने उनसे शादी की। उन्होंने दो साल का समय साथ-साथ बिताया और जब मोदी हिंदू आश्रमों की यात्रा सहित दो साल की यात्रा शुरू कर रहे थे।[191] कथित तौर पर, उनकी शादी कभी नहीं हुई थी, और उन्होंने इसे गुप्त रखा क्योंकि अन्यथा, वह शुद्ध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में 'प्रचारक' (उपदेशक) नहीं बन सकते थे।[192] मोदी ने अपने करियर के अधिकांश समय के लिए अपनी शादी को गुप्त रखा। उन्होंने पहली बार अपनी पत्नी को स्वीकार किया जब उन्होंने 2014 के आम चुनावों के लिए अपना नामांकन दाखिल किया।[193] मोदी ने अपनी मां हीराबेन के साथ करीबी रिश्ता कायम रखा।[c]
एक शाकाहारी और टेटोटैलर, मोदी की एक मितव्ययी जीवन शैली है और एक कार्यशील और अंतर्मुखी है।[195][196] गूगल हैंगआउट पर मोदी के 31 अगस्त 2012 के पोस्ट ने उन्हें लाइव चैट पर नागरिकों के साथ बातचीत करने वाला पहला भारतीय राजनीतिज्ञ बना दिया।[197] मोदी को उनके हस्ताक्षर के लिए एक फैशन आइकन भी कहा जाता है, जिनके सिर पर कुरकुरा इस्त्री, आधी बांह का कुर्ता और साथ ही उनके नाम के साथ एक सूट होता है, जो पिनस्ट्रिप में बार-बार उभरा होता है, जिसे उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की राज्य यात्रा के दौरान पहना था, जो सार्वजनिक था और मीडिया का ध्यान और आलोचना।[198][199] मोदी के व्यक्तित्व को विद्वानों और जीवनीकारों ने ऊर्जावान, अभिमानी और करिश्माई के रूप में वर्णित किया है।[200]
अनुमोदन रेटिंग
एक प्रधानमंत्री के रूप में, मोदी को लगातार उच्च अनुमोदन रेटिंग मिली है; कार्यालय में अपने पहले वर्ष के अंत में, उन्होंने प्यू रिसर्च पोल में 87% की समग्र स्वीकृति रेटिंग प्राप्त की, जिसमें 68% लोगों ने उन्हें "बहुत अनुकूल" और 93% उनकी सरकार को मंजूरी दी।[201] इंस्टावाणी द्वारा किए गए एक राष्ट्रव्यापी मतदान के अनुसार, उनकी स्वीकृति रेटिंग कार्यालय में अपने दूसरे वर्ष के दौरान लगभग 74% पर बनी रही।[202] कार्यालय में अपने दूसरे वर्ष के अंत में, एक अद्यतन प्यू रिसर्च पोल से पता चला कि मोदी ने 81% की उच्च समग्र अनुमोदन रेटिंग प्राप्त करना जारी रखा, जिसमें से 57% लोगों ने उन्हें "बहुत अनुकूल" रेटिंग दी।[203] कार्यालय में अपने तीसरे वर्ष के अंत में, एक और प्यू रिसर्च पोल ने मोदी को 88% की समग्र स्वीकृति रेटिंग के साथ दिखाया, उनका उच्चतम अभी तक, 69% लोगों ने उन्हें "बहुत अनुकूल रूप से" रेटिंग दी। टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा मई 2017 में किए गए एक सर्वेक्षण में 77% उत्तरदाताओं ने मोदी को "बहुत अच्छा" और "अच्छा" के रूप में मूल्यांकन किया।[204] 2017 की शुरुआत में, प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वेक्षण ने मोदी को भारतीय राजनीति में सबसे लोकप्रिय व्यक्ति के रूप में दिखाया।[205] मॉर्निंग कन्सल्ट द्वारा ग्लोबल लीडर अप्रूवल रेटिंग ट्रैकर नामक साप्ताहिक विश्लेषण में, मोदी ने 13 देशों में सभी सरकारी नेताओं के 22 दिसंबर 2020 तक सबसे अधिक शुद्ध अनुमोदन रेटिंग प्राप्त की थी।[206]